( मालवी मन का मनोरम अहसास)
पानी पे पाती
वर्षा तू थारा घरे जा !
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वर्षा तू थारा घरे जा
थारी बई मारेगी कूटेगी
के शिप्रा में डूबोकेगी
चांद रिसायो पूनम की रात
सूरज छिप्यो बादला की घात
तूना बिगाड्य् अबरके घणा काम
बई अब तो चली जा अपना गाम
थारा पे हुओ यो कसो भूत सवार !
बिगाड्या गणपति ने सगला तेवार
तू तो जावा को नामज नी लई री हे
अपणो समझी के पराया घर रई री हे
पामणा हो तो पामणा सरका रो
काम पूरो हुओ के अपनो रस्तो लो
अच्छी बात कोनी दूसरा घरे जादा रेनो
तू अबे चली जा, मान ले म्हारो केनो
थारा यां टिक्या रेवा से हमारी आफत
चन्दा ने सूरज धरती सा वईग्या लापत
नदी नाला पोखर सगला उबरई रिया हे
भूखा मवेशी कीचड में कंदरई रिया हे
खेतां में खडी फसल तोडी री हे दम
बच्चा घर में बठी के करी रिया उधम
उनको इस्कूल जाणो हुई रियो हे मुश्किल
थारी इनी हरकत पे हुई री हे खिलखिल
मूंडा पे गूमडा सरका सडकां का गड्ढा
जैसे दिखवा लग्या हे बापडी का हड्डा
पन्द्रह अगस्त पे तूने पानी फेर्यो -
अब श्राद्ध तो मनई लेवा दे महारानी
जिन्दा के तो कर्यो तूने पानी - पानी
मर्या के तो करवा दे धूप - ध्यानी
नानी हूण के संजा मनावा दे
थोडो धूप को तडको आवा दे
साग- सब्जी हार- फूल हुई ग्या मेंगा
असा हालत में हम कद तक रांगा
पामणा सी आती तो होतो थो स्वागत
आवा सारू करता था सगला मिन्नत
अब सब मिली के थारे भगई रिया हे
सब थारा जावा का गीत गई रिया हे
कई तू जावा को रस्तो भूली गी हे
के यां थारी कोई से आंख मिलीगी हे
थारी कई मजबूरी हे तू जाण
पण म्हारी इनी बात पे दू कान
चुपचाप बांधी ले अपनो बोरी बिस्तर
अपना साथे लई जा अपनी या तरबतर
इनी धरती का लोग के तू जाणे कोनी
ई करवा में माहिर हे होनी के अनहोनी
नी गई तो करीके इन्दर से शिकायत,
छीनी जाएगी थारी चाकरी
काम काज का छिनताज तो हुई जाएगी
गेली, डूंडी, बेकार ने बावरी
जसे बेकारी से छई हे आखा देश में मंदी
थारा पे बी लगी जाएगी असीज पाबंदी
सोची ले यां रेनो के जाणो थारी तू जाण
चेतई दियो, समझानो थो म्हारो काम
जो तू चाए के नी होय थारी जग हंसई
छोडनी पडेगी यां जम्या रेवा की ढिठई
अच्छा-अच्छा में चली जाएगी तो रेगो मान
नी सगला मिल करेगा अनादर ने अपमान
वेगा टोना-टोटका, जप-तप, यज्ञ- अनुष्ठान
थारे वापिस भेजवा को चलेगो अभियान
अससे कई रियो हूं चली जा तू थारा घर
नी तू जनता मारेगी कूटेगी
पकडी के शिप्रा में डुबोकेगी
- डाॅ देवेन्द्र जोशी