एक सुलगता सवाल

 




एक सुलगता सवाल

 

कोरोना की जंग में पत्रकारों  की सुध आखिर कब ली जाएगी 

 

डाॅ देवेन्द्र जोशी

 

इस विषय पर लिखने में मेरे इतने पीछे रहने की वजह यह है कि अगर डाॅक्टरों, पुलिस कर्मियों , गरीबों भुखमरी का शिकार हो रहे आम लोगों से पहले अगर मैं पत्रकारों की बात करता तो मुझ पर अपनी बिरादरी का पक्ष लेने या अपने मुंह मिया मिठ्ठू बनने का आरोप लग सकता था। ऐसा मैं कभी कर नही सकता। इसलिए अपने साथियों की तकलीफ /पीडा देखते हुए भी मेरी कलम खामोश रही। क्योंकि मेरे गुरू ने मुझे सिखाया है कि हमेशा अपने से नीचे वालों को देखकर चलो। इसलिए कोरोना जंग में दूसरों की पीडा के मुद्दे को अपना कर्तव्य समझ कर उठाता रहा। लेकिन अब  जब पानी सर पर से गुजरने लगा तो कोरोना में पत्रकारों की कर्तव्य निष्ठता पर बात करने का साहस जुटा पा रहा हूं।।

जब प्रदेश में अपनी ड्यूटी देते हुए डाॅक्टरों की जान चली गई तो सबने आंसू बहाए। जब मेरे नाम राशि इन्दौर के पुलिस सब इंसपेक्टर देवेन्द्र चन्द्रवंशी  कोरोना की भेंट चढ गये तो लोगों ने श्रद्धांजलि और प्रदेश मुखिया ने मुआवजे और परिजन को नौकरी की घोषणा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। क्या इतना ही पर्याप्त है। डाॅक्टर और पुलिस के बाद जो तबका जान जोखिम में डालकर पाठकों तक सही सूचना और खबर पहुंचा रहा है उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। कोई यह पूछने वाला नहीं है कि पत्रकार और उनके परिवार का क्या हाल है। उनके घर चूल्हा जल रहा है या नहीं। गत दिवस देवास कलेक्टर ने मीडिया कर्मियों के प्रति हमदर्दी जताते हुए एक पत्र सभी मीडिया कर्मियों को लिखा तो मेरी संवेदना के आंसू अपनी बिरादरी के प्रति छलक पडे। उसी से प्रेरित होकर मुझे लगा कि इस विषय पर लिखना आत्म पीडा नही वरन समाज के दर्द को सामने लाना है। यह काम भी अगर हम नहीं करेंगे तो कौन करेगा।

मेरा कहना सिर्फ इतना है कि क्या कोई पत्रकार कोरोना की बलि चढ जाएगा तभी शासन - प्रशासन की संवेदना जागेगी! जब महाकाल मंदिर के खाए - पिए पंडों की मांग पर प्रशासन अपनी राहत - इम्दाद के द्वार खोल सकता है तो जरूरत मंद मीडिया कर्मियों की मदद के नाम पर मौन का सन्नाटा क्यों। क्या कोई पत्रकार मरेगा तभी शासन - प्रशासन जागेगा। मेरा मत है कि मरना आसान है लेकिन कोरोना के इस कठिन दौर में अपना कर्तव्य निभाते हुए  बीमारी से खुद को बचाते हुए जीना ज्यादा मुश्किल है। अतः डाॅक्टर और पुलिस के बाद कोरोना महामारी की जंग के तीसरे सबसे महत्वपूर्ण निहत्थे सिपाही पत्रकारों की भी समय रहते सुध ली जाए यही समस्त मीडिया संगठनों की इस समय मांग है। 

पत्रकार साथी और समाचार लाईन वेबसाईड  के सम्पादक प्रकाश त्रिवेदी ने कोरोना संकट में पत्रकारों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा है कि

सभी को अपनी ड्यूटी का प्रतिसाद मिल रहा है तो पत्रकारों को भी मिलना चाहिए। प्रशासन-पुलिस-स्वास्थ्य विभाग-नगर निगम-आपूर्ति विभाग सभी अपने अपने दायित्वों का कोरोना संकट में निर्वहन कर रहे है। उनकी कर्तव्यनिष्ठा को सराहा जाना चाहिए। समाज और सरकार दोनों उनका खयाल रख रहे है। समाज उन्हें सम्मान दे रहा है और सरकार वेतन भत्ते के साथ साथ बीमा कवर विशेष वेतन आदि देने वाली है। लेकिन मीडिया के लिए क्या हो रहा है। पत्रकारों की ड्यूटी भी बराबरी की है,रिस्क भी उतना ही है। पर न समाज सराहना कर रहा है और न सरकार सुध ले रही है। 

अखबार से भी कोरोना फैल सकता है इस मिथक ने प्रिंट मीडिया की कमर तोड़ दी है। प्रसार संख्या पर गहरा असर हुआ है। इस कारण प्रिंट मीडिया में पत्रकारों की नौकरियां और वेतन सुविधाएं प्रभावित हो रही है। इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया की अपनी समस्या है,लॉकडाउन के कारण स्थानीय चेनल बहुत मुश्किल में हैं। रीजनल चेनल क्या पेमेंट देते है किसी से छुपा  नही है। राष्ट्रीय चैनलों पर तो यदाकदा ही स्टोरी आ पाती है। वेब मीडिया जरूर बहुत प्रचलन में है लेकिन केवल व्हाट्सएप पर कितना दम मार सकता है। इस मीडिया में विज्ञापन का अकाल है जो पेड न्यूज का थोड़ा बहुत सहारा था लॉकडाउन ने छीन लिया है। कुल मिलाकर पत्रकारों की चिंता कौन करेगा। मालिको की अपनी समस्याएं है उन्हें भी राहत चाहिए। पर वे असंवेदनशील होकर अपने पत्रकारों की चिंता नही कर रहे है( कुछ अपवाद है)।फिर पत्रकारों की चिंता कौन करेगा। 

सवाल राशन या भोजन पैकेट का नही है। सवाल रोजमर्रा के खर्च, ईएमआई, बिजली बिल,पैट्रोल, मोबाईल के खर्च और घर किराए से लेकर अनेक देनदारियों का है। क्या सरकार को पत्रकारों पर ध्यान नही देना चाहिए?। स्थानीय नेता,जनप्रतिनिधि और अधिकारियों को भी मीडिया की चिंता नही है। उनकी नज़र में  मीडियाकर्मी होना जादुई छड़ी प्राप्त कर लेना है। जिसे घुमाते ही सारी समस्याओं का हल हो सकता है। अरे आपको क्या जरूरत है,आपको भी प्रॉब्लम है क्या,आप लोग तो सक्षम है। हम आपकी क्या मदद करे आपके संपर्क तो बहुत ऊंचे है, जैसे वाक्यांश हमे सुनाए जाते है। पत्रकार साथियों के लिए सरकार को जिला स्तर पर व्यवस्था करनी चाहिए। जनसंपर्क विभाग के पत्रकार सुविधा मद का खर्च इस काम मे हो सकता हैं। प्रेस क्लब,पत्रकार संगठन अपने स्तर पर सहयोग कर रहे है,लेकिन जो सहयोग चाहिए उस पर किसी का ध्यान नही है। हमे भी राहत पैकेज चाहिए। उम्मीद है ज़िम्मेदार सुनवाई करेंगे। (कुछ साथी इसे स्वाभिमान या अहम से जोड़ सकते है उनसे निवेदन है कि वे अपने तई अपने साथियों की मदद करे)