साहित्य की दुनिया
करीने से कागज पर चली कलम
जब कारगुजारियों पर कोडे बरसाती है
तो 'तडाक-तडाक' की आवाज नहीं
आती।
व्यवस्था- विसंगति के गाल पर
आहत शब्द की संवेदना जब तमाचा
जडती है तो 'तपाक-तपाक' की
ध्वनि नहीं सुनाती।
इसीलिए साहित्य की दुनिया एक
अलग दुनिया है जिसमें शूल चुभोने
पर भी खिलते हैं फूल और सृजन
की फसल लहलहाती।
यहां गालियों के लिए जुबान गंदी करने की
जुर्रत महसूस नहीं होती चन्द
सुभाषितों की बौछार से ही
आग पानी - पानी हो जाती।
- डाॅ देवेन्द्र जोशी