शक्ति की आराधना साल में सिर्फ एक बार क्यों

 



शक्ति आराधना का पर्व नवरात्रि 


डॉ देवेन्द्र  जोशी 

 

 

शास्त्र  कहते हैं कि 'वीरा भोग्या वसुन्धरा ' अर्थात्  इस धरती के सुखों  का उपभोग करने या उस पर राज्य करने का अधिकार केवल उसी को है जो वीर, ताकतवर यानी शक्ति सम्पन्न है।यहाँ शक्ति से तात्पर्य  अकेली दैहिक ,भौतिक या सांसारिक शक्ति से नहीं है।शास्त्र जिसे वीरता या शक्ति कहकर संबोधित करते हैं उससे आशय उन तमाम  तरह की सामर्थ्य से है जो व्यक्ति को समस्त सांसारिक चुनौतियों  का सामना करने में सक्षम बनाती है । 

संसार हर युग में शक्ति का आराधक रहा है। सच तो यह है कि शक्ति  के बिना संसार का एक कदम भी आगे बढ पाना संभव नहीं  है।शिव की शक्ति उमा,राम की शक्ति सीता, कृष्ण शक्ति राधा से तो सब परिचित  हैं ही।लेकिन इस युग में भी शक्ति की महत्ता उतनी ही बल्कि  उससे भी कहीं ज्यादा है। जैसे -जैसे युगीन चुनौतियाँ और प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है वैसे - वैसे शक्ति की उपादेयता दिन दूरी रात चौगुनी  बढ़ती जा रही है। हर दिन हर क्षण हर क्षेत्र में व्यक्ति को अपने होने का अहसास कराना पड़ता है। जिसमें अपनी काबलियत शक्ति,सामर्थ्य को साबित करने का माद्दा अर्थात् अपनी क्षमताओं का लोहा मनवाने की क्षमता है वही प्रतिस्पर्धा में टिका रह सकता है। जहाँ वह चूका कि अवसर उसे छोड़ कर आगे निकलने और उसका स्थान झपटने को एकाधिक लोगों की कतार तैयार खड़ी है ।सारांश यह कि जब शक्ति  की आवश्यकता हर दिन हर पल महसूस होती है तो फिर उसकी उपासना का उपक्रम साल में एक बार ही क्यों ?  जब शक्ति की आवश्यकता नियमित महसूस होती है तो उसकी उपासना भी सिर्फ वर्ष में एक बार नहीं, नियमित होनी चाहिए। जिसने अपने आपको कर्तव्य पथ की शक्ति आराधना के सांचे में ढाल लिया उसके लिए जीवन आसान और चुनौतियाँ अवसर बन जाती है ।

नवरात्रि मूल रूप से शक्ति आराधना का पर्व  है। देवी आराधना  के  जरिए आत्मशक्ति जागृत करना ही इस पर्व  का मुख्य ध्येय  है।जब चर्चा शक्ति की चल ही पड़ी है तो यह भी समझ लें कि शक्ति बाहरी  नहीं वरन् आंतरिक अवधारणा है। अस्त्र- शस्त्र और संसाधनों की  प्रचुरता से इसका कोई लेना - देना नहीं है। यह निजी विश्वास से जुड़ा नितांत वैयक्तिक मामला है। शायद इसीलिए संसार के बलों में सर्वश्रेष्ठ आत्मबल को कहा गया है। यह महात्मा गाँधी और मर्यादा  पुरुषोत्तम श्रीराम का आत्मबल ही था,जिसने कि ब्रिटिश साम्राज्य और लंकापति रावण जैसी दुनिया की दो बड़ी ताकतों को दो कृषकाय  मानवों के समक्ष नत मस्तक होने को विवश कर दिया। कौरव और पांडवों का संग्राम हो या कृष्ण  - कंस  का युद्ध,जीत हमेशा सत्य की होती है। सत्य सदा उसी का साथ देता है जिसमें आत्मविश्वास और आत्मबल है।आत्मबल भी ऐसा - वैसा नहीं  बिल्कुल चट्टान की तरह अडिग एकदम सत्यवादी हरीशचन्द्र जैसा। आत्मबल की यह ताकत हर व्यक्ति में अन्तर्निहित है,आवश्यकता सिर्फ उसे जागृत करने की है। आओ!  इस नवरात्रि में देवी उपासना के जरिए हम सब अपने भीतर बैठी उस आत्मशक्ति को जागृत करने का उपक्रम  करें।

प्रश्न उठना लाजमी है कि नवरात्रि में शक्ति की आराधना क्यों? जीवन को सहज, शांतिपूर्ण,तनावमुक्त और आनंद से परिपूर्ण बनाने के लिए शक्ति की आराधना जरूरी है। आज दुखों का प्रमुख कारण अशक्ति है। जीवन आस्थाएं गडबडा गई है। अचिन्त्य चिंतन से उत्पन्न तनाव विस्फोटक होता जा रहा है। चारों तरफ प्रसन्नता का अभाव है। हर व्यक्ति अभाव में जी रहा है। धन का अभाव, सामर्थ्य का अभाव, मानसिक शक्ति व संतुलन का अभाव, धैर्य और संतोंष का अभाव ही मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण है। इससे मुक्ति का एक मात्र उपाय शास्त्रों के अनुसार शक्ति आराधना ही है। नवरात्रि साधना के द्वार शक्ति संचय की बेला है।आत्मिक प्रगति के लिए वैसे तो किसी अवसर विशेष की बाध्यता नहीं होती। लेकिन नवरात्रि में किए गए उपाय संकल्प बल के सहारे शीघ्र फलीभूत होते हैं। चिंतन प्रवाह को सकारात्मक मोड़ देने वाली तरंगे भी इन नौ दिनों में विशेष रूप से उठती है। इस अवधि में जब वातावरण में अनुदान बरसते रहते हैं, संकल्प साधना की जाए तो चमत्कारिक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। शक्ति संचय के लिए साधना जरूरी है। साधना इन्द्रिय संयम की, क्रोध पर नियंत्रण की और चित्त की एकाग्रता की। जिसे इन्हें काबू में रखने आ गया समझो उसे हर मुश्किल से पार पाना आ गया। दिखने में यह काम जितना आसान लगता है व्यवहार में यह उतना ही दुष्कर है। चित्त की जड़ी ले संस्कार और लोभ - मोह के धागे हमारी आध्यात्मिक प्रगति में सबसे बड़ी बाधा होते हैं। जिन पर नियमित अभ्यास और सतत साधना से विजय पाई जा सकती है। आंतरिक दृढ़ता के साथ किए गए अभ्यास से न केवल भावनात्मक  असंतुलन  का निदान होगा वरन मन की आंतरिक शक्ति भी बढ़ेगी। नवरात्रि में पारायण की जाने वाली दुर्गा सप्तशती में मां दुर्गा के नौ मनोरम स्वरूपों का वर्णन है। मंत्र, तंत्र और यंत्रों के माध्यम से उस शक्ति तत्व की साधना के रहस्यों का उद्घाटन करने वाले ऋषियों का मत है कि उसकी उपासना से पुत्रार्थी को पुत्र, विद्यार्थी को विद्या, धनार्थी को धन एवं मोक्षार्थी को मोक्ष की प्राप्ति होती है। शारदीय नवरात्रि की पूजा सर्व प्रथम  भगवान श्रीराम ने की थी। उसके बाद ही दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया था।आदि शक्ति के हर रूप की नवरात्रि में अलग - अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं  शक्ति का नाम सिद्धि दात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली है। इनका वाहन सिंह और कमल पुष्प इनका प्रमुख और प्रिय आसन है। भय,भ्रांति, अभाव और संकटग्रस्त व्यक्ति के लिए स्वयं को दुखों के दल- दल से निकालने और सुख- शांति तथा मुक्ति का दुर्लभ अवसर है नवरात्रि साधना।अपने भक्तों के लिए कभी यह लक्ष्मी,महाकाली, महा सरस्वती के रूप में अवतरित होती है तो कभी काली,तारा,षोडशी,छिन्नमाता,त्रिपुर भैरव,धूमावती, बगलामुखी, मातंगी,भुवनेश्वरी एवं कमला इन दश महाविद्याओं के रूप में वरदायिनी होती है और वह आद्योपांत शक्ति अपने उपासकों की मनोकामनापूर्ति के लिए शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा,कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि , महागौरी, एवं सिद्धिदात्री - इन नौ दुर्गाओं के रूप में प्रकट होती है। नवरात्रि का अर्थ ही नौ पावन ,दुर्लभ,और दिव्य, शुभ रातें  है। मुख्यतः यह पर्व वर्ष में  दो बार मनाया जाता है- शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि मे। शास्त्रों के अनुसार यह पर्व  वर्ष में चार बार आता है। शेष दो से ज्यादातर लोग परिचित  नहीं इसलिए उन्हें गुप्त नवरात्रि की श्रेणी में रखा जाता है। 

 



नवरात्रि चालिसा

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जगमग - जगमग जोत जली आया नवरात्रि का त्योहार।
माता के जयकारों से गूँज उठा शेरोंवाली का दरबार ।।

जप, तप, उपवास और हवन का है ये उत्सव ।

नवरात्रि है शक्ति आराधना का पुण्य महोत्सव ।।

नवरात्रि के नौ दिनों की महिमा रही सदा निराली ।

नित नूतन रूपों में दर्शन देती चण्डी, दुर्गा,काली ।।

सच्चा साधक बन जो नित माता को ध्याए ।

सकल कारज सिद्धि मनोवांछित फल पाए ।।

सांसारिक भोगों को छोड़ हुआ जो दुर्गा भक्ति में लीन।

माया मोह को त्याग हुआ भवानी भक्ति में जो तल्लीन।।

जीवन उसका सुख समृद्धि ऐश्वर्य से भर जाता ।

संसार सुखों को भोग वो भवसागर से तर जाता।।

नवरात्रि देवी आराधन और शक्ति का है संचय ।

पापों से मुक्ति और सुख समृद्धि का सम्मुच्चय।।

भक्तों को देती आशीष, करती दुष्टों का संहार ।

युगीन महिषासुरों पर मां करती प्रचंड प्रहार ।।

जब तक हाथों में शक्ति, संग दुनिया सारी है ।

शक्ति के ढलते ही अपने ढलने की बारी है ।।

युगों - युगों से होता आया शक्ति महिमा का बखान ।

वेद, पुराण, उपनिषद करते सब शक्ति का गुणगान।।

अस्त्र- शस्त्र से बढ़कर है देवी सिद्धि का आत्म बल।

ये वो अमोघ ब्रह्मास्त्र है जो कर देता दुष्टों को निर्बल।।

मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम ने किया नवरात्रि आराधन।

नौदिनी साधना से किया दसवें दिन से दशानन मर्दन।।

ज्यों - ज्यों बढ़ता पैशाचिक शक्तियों का आतंक।

त्यों-त्यों नुकीले होते जाते नर पिशाचों के डंक ।।

ऐसे आतताइयों से मुक्ति की साधना है नवरात्रि ।

इस पर भी जो न माने उसके लिए है कालरात्रि।।

जिसका जितना हो आंचल सौगात उसे उतनी मिलती।

हो देवी कृपा तो कांटों में भी फूल - कलियां खिलती।।

जीवन को हो अगर बनाना तुम्हें निर्मल - निर्भय।

हो चाह अंतर्मन को करने की आलोकित अभय।।

तो करो भक्ति भाव से नित शेरों वाली का आराधन।

हाथ जोड़ ध्वजा नारियल ले करो माते रानी का वंदन।।

जीवन में अपने लाना चाहते हो अगर नारायण।

नवरात्रि में नित्य करो दुर्गा सप्तशती पारायण।।


शक्ति उपासना के मर्म को जिसने जान लिया ।

क्षणभंगुर जीवन को उसने सही पहचान लिया ।।


किसकी सामर्थ्य जो बखाने मैया की शक्ति अपार।

मैं दास देवेन्दर कैसे गाऊं महिमा उसकी अपरंपार।।

- डाॅ देवेन्द्र जोशी