कालिदास की नगरी में व्यंग्यकारों का कुंभ

 







सम्मान के लिए मरने की नहीं सार्थक लिखने की जरूरत - ज्ञान चतुर्वेदी


खुद मिटे बिना नया रचना संभव नहीं - प्रमोद त्रिवेदी

 

वलेस का तृतीय व्यंग्य सम्मान दिल्ली के प्रो कमलेश पाण्डे को प्रदान किया गया

 

डाॅ देवेन्द्र जोशी

 

उज्जैन। "सम्मान के लिए लेखक को मरने की नहीं जीते जी ऐसा कुछ लिखने की जरूरत है जिस पर लेखक स्वयं और मरणोपरांत आने वाली पीढी गर्व कर सके।" यह कहना है सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी का जो अपने ही नाम से प्रतिवर्ष दिए जाने जाने वाले तृतीय सम्मान के अवसर पर उज्जैन में प्रमुख अतिथि के रूप में बोल रहे थे। अध्यक्षता वरिष्ठ कवि प्रमोद त्रिवेदी ने की। इस वर्ष का सम्मान प्रो कमलेश पांडे दिल्ली को प्रदान किया गया। 

अपने ही नाम से दिए जाने वाले सम्मान समारोह के अतिथि की अनुभूति साझा करते हुए मुखर व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी ने कहा कि यह जैसे जीते जी अपना तर्पण होने जैसा है। उन्होंने कहा कि शुरू-शुरू में तो अटपटा लगा फिर सोचा कि क्या सम्मान के लिए  मरना जरूरी है! व्यक्ति के जीते जी उसके नाम से दिया जाने वाला यह सम्मान जहां जहां मिथ तोडता है वहीं इससे व्यक्ति को देवता बनाए जाने, उसकी पूजा,संकीर्तन के खतरे भी बढते हैं जिनसे सावधान रहने की आवश्यकता है। क्योंकि ये सब व्यक्ति को अपने आपसे दूर कर उसकी एकाग्रता भंग करते हैं।  मेरी निजी सोच का जहां तक सवाल है मेरे लिए ये  जिम्मेदारी तथा और अधिक बेहतर लिखने के प्रतीक का पर्याय है। 

अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो प्रमोद त्रिवेदी ने कहा कि  सार्थक लेखन वह है जो अपने समय की चुनौतियों को पेश कर सके। अभिव्यक्ति के खतरे उठाए बिना कोई  सफल लेखक नहीं बन सकता। हर लेखक को अपनी लाईन खुद खींचनी चाहिए। कब तक दूसरों की खींची लाईन की लम्बाई नापते रहोगे। वरिष्ठ आलोचक ने  बेबाकी किन्तु विनम्रता से अपनी बात रखते हुए कहा कि कब तक पुरातन पंथी सोच से चिपके रहोगे।आखिर आदमी की भी कोई एक्सपाईरी डेट होती है। अधबीच में छपकर अपने को बडा व्यंग्यकार मानने वालों को आडे हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि अब बहुत हो गया। इससे आगे बढो। अखबार के कालमों में छपकर कभी कोई बडा व्यंग्यकार नहीं बना। ये कालम लेखन को सीमा में बांधते हैं। व्यंग्यकार को इनके सांचे में ढलने के बजाय इन सीमाओं को तोडकर इन्हें अपने सांचे में ढालने की सामर्थ्य अपने भीतर पैदा करनी चाहिए। सहमति के लेखन से असहमति हमेशा बेहतर होती है। वरिष्ठ समालोचक ने कहा कि भरी हुई स्लेट पर कुछ नया लिखने के लिए पुराने को मिटाना जरूरी है। जिस तरह पुराना मिटाए बिना नया नहीं लिखा जा सकता उसी तरह  एक लेखक को नया कुछ रचने के लिए अपने को मिटाना पडता है।अपने आपको को मिटाए बिना नया रच पाना संभव नहीं है।

इस अवसर पर सम्मानित व्यंग्यकार कमलेश पाण्डे और चयन समिति प्रमुख राहुल देव ने भी अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर सुशील सिद्धार्थ और वीजी श्रीवास्तव की व्यंग्य कृतियों का लोकार्पण भी हुआ। आयोजक संस्था वयंग्य लेखक समिति (वलेस) की आशा सिद्धार्थ का ऑडियो सन्देश भी इस अवसर पर सुनाया गया। आरंभ में अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। स्वागत भाषण शान्तिलाल जैन ने  दिया। अतिथियों का स्वागत डाॅ हरिश कुमार सिंह, ईश्वर शर्मा, मुकेश जोशी, शशांक दुबे आदि ने किया।संचालन डाॅ पिलकेन्द्र अरोरा ने किया। इस अवसर पर डाॅ शिव चौरसिया, डाॅ हरिमोहन बुधौलिया, डाॅ उर्मि शर्मा, डाॅ पुष्पा चौरसिया, डाॅ देवेन्द्र जोशी, डाॅ शैलेन्द्र शर्मा, शशिमोहन श्रीवास्तव, संतोष सूपेकर, डाॅ चन्दर सोनाने, डाॅ प्रकाश रघुवंशी, डाॅ विवेक चौरसिया, संदीप सृजन, व्यंग्यकार सौरभ जैन, संजय जोशी, रमेश चन्द्र शर्मा आदि सहित बडी संख्या में स्थानीय साहित्य अनुरागी और बाहर से आए व्यंग्यकार उपस्थित थे। उद्घाटन सत्र पश्चात युवा व्यंग्य लेखन, स्त्री लेखन, व्यंग्य उपन्यास, व्यंग्यपाठ आदि के सत्र संपन्न हुए जिनमें कमलेश सुधीर, सुधीर चौधरी, प्रभाशंकर उपाध्याय, अनुज खरे, विजी श्रीवास्तव, मृदुल कश्यप, सौनील जैन, अक्षय नेमा, सुदर्शन सोनी, राजेन्द्र देवधरे कैलाश मंडलेकर, ईश्वर शर्मा, अर्चना चतुर्वेदी, नीरज शर्मा, इन्द्रजीत कौर, राहुल देव, मलय जैन, जगदीश ज्वलंत, शशांक दुबे आदि ने भाग लिया। 

 

व्यंग्य सृष्टि पर वक्र दृष्टि

 

टेपा सम्मेलन को भुनाया लेकिन डाॅ शिव शर्मा को भुलाया

 

वलेस के तृतीय व्यंग्य सम्मान की व्यंग्य सृष्टि पर नगर के प्रबुद्ध जन वक्र दृष्टि कुछ इस  तरह पडी- 

1 अपने नाम से दिए जाने वाले सम्मान में प्रमुख अतिथि डाॅ ज्ञान चतुर्वेदी ही खुद आधा घंटा विलम्ब से मंच पर तशरीफ लाए। यह उनका इसी मंच पर विलम्ब से हाजिर होने का द्वितीय कीर्तिमान था।

2 सूत्रधार डाॅ पिलकेन्द्र अरोरा मेजबान की भूमिका में मंच पर इतने उत्साहित और हाबरे- काबरे नजर आए कि खुद उद्घषणा करने के बावजूद सुशील सिद्धार्थ की किताब का लोकार्पण करवाना ही भूल गए। बाद में किसी के याद दिलाने पर विमोचन हुआ।

3  कार्यक्रम के दौरान उत्साह के अतिरेक में मंच संचालक का बार - बार व्यंग्यकारों को अपना परिवार और शेष सुधि श्रोताओं को गैर बताना बडा अजीब लग रहा था। जैसे वे किसी और दुनिया के प्राणी हो।
4  हद तो तब हो गई जबकि मंच संचालक मंचस्थ चार अतिथियों में से तीन को एकाधिक बार अपने परिवार का बताने के बाद चौथे अतिथि प्रमोद त्रिवेदी को भी अपने ही (व्यंग्य) परिवार में शामिल कर बैठे। तब मजबूरन प्रमोद जी को अपने उद्बोधन में इसका खंडन करते हुए जवाब व्यंग्य में देना पडा। उन्होंने कहा कि पिलकेन्द्र जी का यह आचरण ऐसा ही है जैसे चुनाव के समय हर कोई आकर मतदाता के मकान पर अपनी पार्टी का झंडा लगा जाता है। (क्या इस तरह के अतिरेक से नहीं बचा जाना चाहिए)


5 प्रसिद्ध व्यंग्यकार और अभा टेपा सम्मेलन संस्थापक डाॅ शिव शर्मा की मृत्यु के बाद यह उज्जैन में व्यंग्य का पहला बडा आयोजन था। उनका स्मरण, उन्हें कार्यक्रम समर्पित करना तो किसी ने उनका नाम लेना भी उचित नहीं समझा।

6 सूत्रधार डाॅ पिलकेन्द्र अरोरा ज्ञान चतुर्वेदी को अपना गुरू बताना तो नहीं भूले लेकिन अपने टेपा गुरू का स्मरण करना टाल गए।

7 न केवल भूलवश डाॅ शिव शर्मा की अनदेखी की गई अपितु समय पलटते ही उनके 32 वर्षों तक टेपा सह अनुयायी रहे सूत्रधार ने टेपा सम्मेलन और डाॅ शिव शर्मा का नाम लेने से पूरी तरस परहेज किया। मंच से कालिदास अकादमी के मुक्त आकाशी मंच के हवाले से टेपा सम्मेलन में भाग लेने वाले देश के शीरस्थ व्यंग्यकारों के नाम को तो खूब भुनाया गया लेकिन यह नहीं बताया कि वे अ भा टेपा सम्मेलन में भाग लेने स्व डाॅ  शिव शर्मा के आमंत्रण पर उज्जैन आए थे। इस पर वक्र दृष्टि दीर्घा में यह खुसुर - पुसुर थी कि रंग बदलती दुनिया में निष्ठा बदलते देर का लगती  आज मरे कल दूसरा दिन कहावत कहां कितनी सटीक बैठती है यह तो दुनिया को टेढी नजर से देखने वाले व्यंग्यकार ही बेहतर जानें लेकिन व्यंग्य के कुंभ में जहां भोपाल से आए ज्ञान चतुर्वेदी की व्यंग्य सक्रियता के बारे में  इतने कशिदे पढे गए वहां अगर दो शब्द  दिवंगत शिव शर्मा जी के बारे में बोल दिए जाते तो आयोजन छोटा तो नहीं हो जाता। 

8 आयोजन को व्यंग्य कुंभ का नाम दिया गया लेकिन  व्यंग्य अखाडे के कई मंडलेश्वर और  महामंडलेश्वर सूचना के अभाव में कुपित हो अपने कोप भवन से बाहर ही नहीं निकल पाए। 

9 शब्दों की नोक - झोक अपनी जगह है लेकिन साहित्य कला संस्कृति की नगरी उज्जैन में  देश के व्यंग्यकारों को जुटाने की नगर के व्यंग्यकारों की परिश्रम भरी पहल सार्थक ही कही जाएगी जिसके लिए डाॅ पिलकेन्द्र अरोरा और उनकी टीम बधाई व साधुवाद की पात्र है। 

मो 9977796267