भुला दिया अंचल की मीठी बोली को

 


भुला दिया अंचल की मीठी बोली को


आपसी खींचतान की भेंट चढा मालवी कवि समामेलन


उज्जैन। नगर निगम द्वारा प्रतिवर्ष कार्तिक मेले में आयोजित होने वाला अ भा लोकभाषा कवि सम्मेलन इस वर्ष आयोजित नहीं होने से मेले की 67 साल पुरानी परंपरा आज टूट गई। 10 दिसम्बर की शाम करीब  1 माह तक चले कार्तिक मेले का समापन होने जा रहा है। इस बार लोकभाषा कवि सम्मेलन आयोजित नहीं किए जाने से स्थानीय साहित्य अनुरागियों में दुख एवं क्षोभ व्याप्त है। उल्लेखनीय है कि नगर निगम द्वारा कार्तिक मेले में लाखों रूपये खर्च कर अभा और स्थानीय कवि सम्मेलन, मुशायरा सहित विविध विधाओं के कार्यक्रम पूरी मेला अवधि में हर शाम आयोजित किए गए। लेकिन लोक भाषा कवि सम्मेलन को बिना सूचना धता बता दी गई। मालवी साहित्य अनुरागी इन्तजार ही करते रहे और मेला समापन की बेला आ गई। पूछताछ करने पर पता चला कि संयोजकों के आपसी खींचतान के चलते इस बार लोकभाषा कवि सम्मेलन आयोजित नहीं हो सका। जो दुर्भागयपूर्ण ही नहीं निन्दनीय भी है। खास तौर से तब जबकि स्वयं प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत माह मन की बात कार्यक्रम में आंचलिक भाषा और बोलियों के लुप्त होने पर चिन्ता जताई है। केन्द्रीय मानव संसाधन विभाग बोली और भाषाओं के 51 कोश तैयार करवा रहा है। ऐसे में नगर निगम का यह कारनामा लोक भाषा प्रोत्साहन की दृष्टि से  21 वीं सदी में 18 वीं सदी में ले जाने जैसा है।


यह कवि सम्मेलन देश का एक मात्र ऐसा आयोजन है जो मालवी ही नहीं राजिस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ, हरियाणा आदि प्रान्तों की लोकभाषा और बोलियों के कवियों को मंच प्रदान करता रहा है। मालवी का गढ  माने जाने वाले उज्जैन में मालवी और लोकभाषा के संरक्षण में पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास, डाॅ चिन्तामणि उपाध्याय, डाॅ श्याम परमार, डाॅ श्यामसुन्दर निगम, माचकार सिद्धेश्वर सेन, लोकविद डाॅ शिवकुमार मधुर के बाद वर्तमान में डाॅ भगवती लाल राजपुरोहित, डाॅ शिव चौरसिया, डाॅ शैलेन्द्रकुमार शर्मा, डाॅ देवेन्द्र जोशी महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। इसी का नतीजा है कि विक्रम वि वि के पाठ्यक्रम में मालवी पढाई जा रही है, मालवी पर शोध हो रहे हैं। इस वर्ष विक्रम विवि की हिन्दी अध्ययन शाला ने राष्ट्रीय गांधी संगोष्ठी में बहुभाषा कवि गोष्ठी आयोजित कर मालवी,निमाडी, छत्तीसगढी और गुजराती भाषा के कवियों को शामिल कर नए कीर्तिमान कायम किए। कालिदास समारोह और अन्य नाट्य समारोह में भी यदा कदा लोकभाषा की प्रस्तुतियों को शामिल किया जाता रहा है। प्रतिष्ठित समाचार पत्र नईदुनिया ने साल के आरंभ में पाठकों की मांग पर लोकप्रिय स्तंभ थोडी घणी लगातार प्रकाशित कर लोकभाषा की रचनाओं को प्रकाशित किया। इसमें उज्जैन से डाॅ देवेन्द्र जोशी ने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से मालवी का परचम लहराने में कोई कसर बाकी नहीं छोडी। आकाशवाणी और भोपाल दूरदर्शन द्वारा हर पखवाडे मालवी कविता का कार्यक्रम प्रसारित किया जा रहा है। सारांश यह कि जब चारों तरफ मालवी और लोकभाषा को प्रोत्साहन के प्रयास जारी हैं ऐसे में नगर निगम की लोकभाषा कवि सम्मेलन आयोजित नहीं करने की नीति समझ से परे है।


भाषा विद्वानों का मत है कि लोकभाषा और बोलियों का संरक्षण करके ही परंपराओं की रक्षा की जा सकती है। लोकभाषा और बोलियां रहेगी तब ही लोक संस्कृति कायम रह पाएगी। इस वर्ष तो मालवी साहित्य के पुरोधाओं की एक साथ जो क्षति हुई उसे देखते हुए तो इस लोकभाषा के इस प्रतिष्ठापूर्ण आयोजन को उन पुरोधाओं की स्मृति में विशेष शिद्दत से आयोजित किया जाना था। बालकवि बैरागी, मदन मोहन व्यास, मोहन सोनी सुल्तान मामा, रामचन्द्र अरूण, अरविन्द त्रिवेदी मालव माटी के ऐसे सपूत थे जिनका इसी वर्ष अवसान हुआ । इन सभी ने इसी मंच से शुरूआत कर मालवी के परचम को सारे देश में फहराया। लेकिन अफसोस कि न केवल इन दिग्गजों बल्कि मालवी कवि सम्मेलन को ही इस वर्ष भुला दिया गया। मालवी काव्य अनुरागियों को जितना आघात इन विभूतियों के जाने से पहुंचा था उससे कहीं अधिक पीडा लोक भाषा कवि सम्मेलन आयोजित न होने से हुई है। यह मालवी के बीज को कुचला जाना, पौधे को रौंदना और परंपरा की जड में मठ्ठा डालने जैसा कत्य है। 


पं सूर्यनारायण जी व्यास द्वारा की गई शुरूआत के बाद इस कवि सम्मेलन ने अभा लोकभाषा कवि सम्मेलन का रूप धारण कर अनेक कीर्तिमान कायम किए। बाद में इस मंच से हरीश निगम स्मृति अभा लोकभाषा कवि सम्मान प्रदान किया जाने लगा। जो संयोग से एक दशक पूर्व इन पंक्तियों के लेखक को प्राप्त होने का भी सुयोग रहा है। ऐसी समृद्ध परंपरा के वाहक लोकभाषा कवि सम्मेलन की बेवजह आयोजित नहीं करना अक्षम्य भूल है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नगर निगम आने वाले समय में अपनी भूल को सुधार कर इस आयोजन को भव्य स्वरूप में आयोजित करेगा। बल्कि होना तो यह चाहिऐ कि नगर निगम लोकभाषा कवि सम्मेलन संयोजन समिति में मालवी से जुडे सक्रिय विद्वान अध्येताओं को शामिल कर उनकी देखरेख में इस आयोजन को कवि सम्मेलन तक सीमित रखने के बजाय मालवी और लोकभाषा के विकास का प्रताष्ठापूर्ण मंच बनाने का प्रयास किया जाए ताकि देश में उज्जैन और नगर निगम की जो साख बनी हुई है वह न केवल बनी रहे अपितु उसमें और वृद्धि हो सके।