कविता

मानव अधिकार इनका क्यों नहीं ?
*************************
मानव अधिकार दिवस 
के मौके पर मेरा सवाल 
है कि क्या
उनका कोई अधिकार 
नहीं है जिनके जिस्म में
प्राण है, 
अन्दर एक दिल धडक रहा है
लेकिन उनकी खता बस इतनी
है कि प्राणी हो कर भी वे मानव
और मानव अधिकार की परिधि
में नही आते हैं, क्या वाकई उनके
अधिकारों का हनन , जिन्दगी का 
बेरहमी से दमन तुम्हें एक पल
को भी नहीं झकझोरता? 
जो  मानव होकर भी
कभी पूर्ण मानव नही बन सका
उसके अधिकारों के संरक्षण
पर इतनी  हायतौबा !!
और जिनने मानव न होकर भी
वफादारी, स्वामीभक्ति समर्पण 
और परदुखकातरता के इन्सानी
गुणों को अंगीकार करते हुए
अपनी जातीय पहचान को भी
कभी मिटने नहीं दिया उन मूक
प्राणियों के प्रति इतनी भी 
संवेदना नही कि अधिकार का
संरक्षण तो दूर उनके सुरक्षित
जीने का ही बन्दोबस्त हो सके।
हो अगर तुममें साहस तो लिख दो
10 दिसंबर को 'मानव अधिकार
दिवस '  की जगह 'प्राणी संरक्षण
दिवस' लेकिन मै जानता हूँ 
तुम ऐसा कभी नही करोगे क्योंकि
तुम्हें हमेशा कुछ करने से ज्यादा
कुछ दिखने की चिन्ता रही है।
मेरे पास भी वक्त बहुत ज्यादा
नहीं है जुबान लडाने का ।
मैं तो बस  संविधान की उस शपथ 
की याद दिलाना चाहता हूं
जिसमें तुमने कसम खाई थी कि
जहां न्याय की हत्या होगी, हम
चुप नहीं बैठेंगे।
कभी हाथी दाँत होती अपनी
जिन्दगी से थोडी फुर्सत मिले तो 
उन प्राणियों के बारे में भी जरा
सोच लेना जो इन्सान न होकर
भी इन्सानियत के ज्यादा करीब हैं।
वैसे भी अपने लिए तो सभी 
जीते हैं इस जहाँ में. ..
हो आदमी का मकसद 
औरों के लिए जीना...


          -डॉ. देवेन्द्र जोशी