असमंजस को कहो अलविदा
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गुजरती हुई जिन्दगी ने गुजरते हुए साल से पूछा-
गुजर तू भी रहा है गुजर मै भी रही हूँ
लौट कर तू भी आने वाला नही है
वापसी मेरी भी संभव नहीं है
तो फिर तेरे नाम पर ये जश्न/ये धूमधडाका
और मेरे नाम पर ये खामोशी /ये सन्नाटा
क्यों ? आखिर क्यों? ?
बडी मासूमियत से गुजरते हुए साल ने
उत्तर दिया - मै 1 जनवरी को आता हूँ
31 दिसम्बर को चला जाता हूँ
365 दिन तक रहता हूँ, फिर
काल के गाल में समा जाता हूँ
तुम्हारे न आने की तिथि
न जाने का कोई ठिकाना
सफर पूरा होने पर भी तुम्हें
ढूंढना पडता है बहाना।
जिसके साथ हो इतनी अनिश्चितता
जिन्दगी होकर भी नहीं कोई निश्चितता
उसके लिए भला कौन अपना कीमती वक्त गंवाएगा?
तयशुदा कार्यक्रमों को छोड उसका जश्न मनाएगा?
इसलिए साल के गुजरने पर दिखता है जश्न और धूमधाम
और जिन्दगी के गुजरने पर सिर्फ सिसकता है श्मशान।
इसलिए हे बडी बहन जिन्दगी! जान लो अनुभव की ये बन्दगी
सफर को अपने बनाना हो जश्न तो सुनो ध्यान से, छोडो सब प्रश्न
"जो भी करो निश्चय से करो बिना निश्चय कुछ मत करो
असमंजस को कहो अलविदा दृढ निश्चय से करो संविदा
बिखरी -बिखरी सी है जिन्दगी हो सके तो उसे संवार दो
विरासत में मिली अनिश्चितता को निश्चय का उपहार दो"।
- डॉ. देवेन्द्र जोशी