सडक दुर्घटनाओं का सच
हर दिन मरते हैं 413 लोग सडक दुर्घटनाओं में

 

डाॅ देवेन्द्र जोशी

 

मर्ज बढता ही गया ज्यों - ज्यों दवा की। कम से कम संशोधित मोटर व्हीकल एक्ट को देखकर तो ऐसा ही लगता है। केन्द्रीय सडक परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने गत सोमवार को प्रश्नकाल के दौरान राज्यसभा में इस बात को स्वीकार किया कि पिछले साल जनवरी से सितम्बर की तुलना में इस साल सडक हादसों में मरने वालो  की संख्या में  म 0,2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हर दिन देश के किसी कोने में लोग सडक हादसों के शिकार हो रहे हैं। अपने आसपास की बात करूं तो बीते गुरूवार को उन्हेल - नागदा मार्ग पर हुई भीषण वाहन दुर्घटना में 5 लोग असमय काल के गाल में समा गए। अफसोस और चिन्ता का विषय यह है कि इस मार्ग पर इस साल छोटे - बडे सडक हादसों में अब तक 50 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। कई ब्लैक स्पाॅट चिन्हित किए गए लेकिन यहां सडक हादसे रोकने की दिशा में कोई कारगर कदम उठते नजर नहीं आए। ये तो एक उदाहरण मात्र है। ऐसे जानलेवा स्पाॅट आपको किसी भी मार्ग पर मिल जाएंगे। जिनकी पहचान होने के बावजूद उन्हें दरूस्त करने की सुध लेने वाला कोई नहीं है। सरकार ने जुर्माना दर में वृद्धि का सरल रास्ता तो जन विरोध के बावजूद अधिकार पूर्वक अपना लिया लेकिन दुर्घटना वाले चिन्हित ब्लैक स्पाॅटों को दुरूस्त करने और सडक हादसो से जुडी खामियों को दूर करने की कर्तव्यनिष्ठता आज तक नहीं दिखाई। 

 मंत्री जी ने इन दुर्घटनाओं के लिए सडक इन्जीनियर संबंधी खामियों को इन हादसों की बडी वजह मानते हुए ब्लैक स्पाॅटों की पहचान कर उन्हें दुरूस्त करने की बात तो कही है। लेकिन इसके लिए किसी तरह की समय सीमा निर्धारित नहीं करने से उनका वक्तव्य लीपापोती और खानापूर्ति जैसा ही लगता है। उल्लेखनीय है कि इस साल 1 सितम्बर से लागू संशोधित मोटर व्हीकल कानून के तहत बिना लाइसेंस के वाहन चलाते पकड़े गए तो 500 रुपये की जगह 5,000 रुपये जुर्माने का प्रावधान जैसे अनेक कडे प्रावधान किए गए हैं। लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि क्या जुर्माना बढाने मात्र से हादसे टल जाएंगे। उपलब्ध आंकडों से तो ऐसा नहीं लगता। जितनी मौतें प्रति दिन बीमारी या आपराधिक कारणो सेे नही होती उससे कहीं ज्यादा सड़क हादसों में होती है। एक आकलन के मुताबिक आपराधिक घटनाओं की तुलना में 5 गुना अधिक लोगों की जानें सड़क हादसों में चली जाती है। कहीं  बदहाल सडकों के कारण तो कहीं  अधिक सुविधापूर्ण अत्याधुनिक चिकनी सड़कों पर तेज रफ्तार अनियंत्रित वाहनों के कारण ये हादसे होते हैं। दुनियाभर में सड़क हादसों में 1,2 मिलियन लोगों की प्रतिवर्ष मौत हो जाती है जिससे करीब 50 मिलियन लोग प्रभावित होते हैं ।भारत में  2015 में  2014 की तुलना में सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई । 2014 में  देश में 4,89 लाख सड़क दुर्घटनाएँ  हुई थी जो 2015 में  5 लाख को पार कर गई । योजना आयोग के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं के कारण हर साल लगभग 3 फीसदी जीडीपी का नुकसान होता है।


सड़क दुर्घटना में  हर घंटे 17 मौतें होती है। देश में  हर साल 4,80,652 सड़क दुर्घटनाएँ होती है।जिनमें 1,50,785 लोग असमय मौत के शिकार  होते हैं ।एक दिन में 1317  सड़क हादसे तथा इनमें  413 लोगों की मौत होती है। जो प्रति घंटे 55 और 177  प्रतिदिन के बराबर  बैठती है। विश्व स्वास्थ्य  संगठन (डब्ल्यू एच ओ) ने 2009 में सड़क सुरक्षा पर अपनी पहली वैश्विक  स्थिति  रिपोर्ट में  सड़क दुर्घटनाओं की दुनिया भर में "सबसे बड़े कातिल" के रूप में  पहचान की थी। भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में  78,7 प्रतिशत हादसे चालकों की लापरवाही के कारण होते हैं ।इसकी एक प्रमुख वजह शराब  व नशीले पदार्थों का सेवन कर वाहन चलाना है। कम्यूनिटी अगेन्स्ट ड्रंकन- ड्राइव( कैड) द्वारा सितम्बर से दिसम्बर 2017 के बीच कराए गये ताजा सर्वे में यह बात सामने आई है कि दिल्ली  एन सी आर के लगभग 55,6 प्रतिशत ड्राइवर शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं । यह बात उन्होंने खुद स्वीकार की है।जब देश की राजधानी का यह हाल है तो अन्य भागों का अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है।इसके अलावा सड़क दुर्घटनाओं की प्रमुख वजहों में क्षमता से अधिक सवारी बैठाना,तेज गति से वाहन चलाना,ड्राइवर का थका हुआ होना और लापरवाही से  वाहन चलाना आदि शामिल है।


हमारी विडंबना यह है कि जहाँ  हमें  पश्चिम देशों से कुछ सीखना होता है वहां हम आंखें मूंद लेते हैं और पश्चिम की जिन चीजों की हमें  जरूरत नहीं है उन्हें सिर्फ इसलिए अपना रहे हैं कि हम भी आधुनिक और प्रगतिशील कहला सकें।पश्चिमी देशों में सड़क दुर्घटना में घायल लोगों को अस्पताल पहुंचाने के लिए  एयर एम्बूलेंस  की सुविधा  उपलब्ध है।इस मामले में  हम अब भी पिछड़े  हुए हैं ।भारत में  एक भी एयर एम्बूलेंस नही है। जो प्रायवेट एम्बूलेंस हैं वे महंगी होने से आम आदमी की पहुंच से बाहर होती है। इसलिए बहुत से लोग सडक दुर्घटना के बाद समय पर उपचार न मिलने के कारण मौत के शिकार हो जाते हैं। 




सडक दुर्घटनाओं में  हर साल 12,5 लाखों लोगों की मौत होती है। 2015  की रिपोर्ट के अनुसार सड़क  दुर्घटना विश्व में  मृत्यु का सबसे बड़ा  कारण हैं। सड़क  हादसों में  मरने वालों की बढ़ती संख्या  ने आज एक महामारी  का रूप धारण कर लिया है।नेशनल  क्राइम  ब्यूरो के सड़क  दुर्घटनाओं में  मरने वालों के आंकडे दिल दहलाने  वाले हैं ।पिछले  साल  सड़क दुर्घटना में  हर घंटे 16 लोग मारे गये।दिल्ली  सड़क पर होने वाली मौतों में सबसे आगे है जबकि  उत्तर प्रदेश इस मामले में घातक प्रांत रहा है।पिछले 10 सालों में  सड़क हादसों  में मरने वालों की संख्या में 42 प्रतिशत की वृद्धि  हुई है।जबकि इस अवधि  में आबादी सिर्फ 14 प्रतिशत ही बढ़ी  है। ज्यादातर मौतें दो पहिया की दुर्घटना में  हुई। क्राइम  ब्यूरो के अनुसार  सड़क  दुर्घटनाओं में मरने वालों में सबसे पहले नम्बर  पर उत्तर प्रदेश फिर महाराष्ट्र और तमिलनाडु  है।

जैसे-जैसे सडकों पर वाहनों  की संख्या  बढ़ती जा रही है उसी अनुपात  में  मरने वालों की संख्या में भी वृद्धि  होती जा रही है। उत्तर  प्रदेश में  कुल मौतों में 11 प्रतिशत, तमिलनाडु में 10,9, महाराष्ट्र में 9,2, कर्नाटक में 7,5,और राजिस्थान में  7,2 प्रतिशत लोग सड़क  दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं ।विश्व स्वास्थ्य  संगठन के अनुसार दुनिया के 28 देशों में  ही सड़क हादसों पर नियंत्रण की दृष्टि से  बनाए गये कानून का पालन हो रहा है।सर्वोच्च  न्यायालय ने देश की सडकों को "राक्षसी हत्यारे" (जायंट किलर) कहा था। लाइसेंस  प्रक्रिया को पूर्णतया डिजिटल और भ्रष्टाचार मुक्त करके,सडकों की गुणवत्ता/ रखरखाव में  सुधार ,लापरवाह  ठेकेदारों पर ब्लेक लिस्ट जैसे कदमों के जरिए नकेल कस कर, यातायात  संकेतों और सडकों  पर प्रकाश की समुचित  व्यवस्था, राजमार्ग पर गश्ती बढ़ा कर शराब पीकर  ड्राइविंग, हाई स्पीड और ओवरलोडिंग  की माॅनीटरिंग  करके भी  बढ़ते हुए सड़क हादसों को पूरी तरह खत्म न सही, एक हद तक कम अवश्य  किया जा सकता  है।