सन् 1952 से बही थी मालवी की काव्य गंगा
 

सन् 1952  से बही थी मालवी की काव्य गंगा

पं सूर्यनारायण व्यास ने की थी शुरूआत

 

 उज्जैन। आज कार्तिक मेले के समापन के साथ ही आज का दिन मालवीय/ लोकभाषा  की परंपरा टूटने के नाम दर्ज हो गया। 67 साल में यह पहला मौका है जब कार्तिक मेले में लोकभाषा कवि सम्मेलन नहीं हुआ। इस मेले में लोकभाषा कवि सम्मेलन की शुरूआत 1952 से हुई। तब पद्मभूषण पं सूर्यनारायण व्यास की प्रेरणा से कार्तिक पूर्णिमा को कार्तिक मेला मंच पर प्रथम मालवी कवि  सम्मेलन आयोजित हुआ था।  जिसमें सर्वश्री आनन्द राव दुबे, गिरवरसिंह  भंवर, मदन मोहन व्यास,हरीश निगम , बालकवि बैरागी, मानसिंह राही, प्रकाश उप्पल, नरहरि  पटेल,वागीश पाण्डेय आदि ने कविता पाठ किया।अध्यक्षता मध्यभारत के तत्कालीन मुख्यमंत्री  मिश्रीलाल गंगवाल ने की। मंच पर सर्वश्री कन्हैया लाल खादीवाला ,श्रीनिवास जोशी,श्याम परमार और पं सूर्यनारायण व्यास उपस्थित थे। कवि सम्मेलन खूब जमा। आनन्द राव दुबे की कविता 'रामाजी तो रई ग्या ने रेल जाती री' तथा मदनमोहन व्यास की कविता 'मालवा की जातरा' और 'म्हारो नाम बाल्यो हे' खूब पसन्द की गई। तब से लेकर अब तक यह परंपरा अबाध जारी है।