गणतंत्र के गण की दास्तान - हम भारत के लोग
लेखक डाॅ देवेन्द्र जोशी का रचनात्मक कीर्तिमान
उज्जैन। भारतीय गणतंत्र की स्थापना के 71 वें साल में गणतंत्र के गण की दास्तान को लिपिबद्ध करने का कीर्तिमान रचा है नगर के यश्स्वी लेखक पत्रकार डाॅ देवेन्द्र जोशी ने। 'हम भारत के लोग' शीर्षक से प्रकाशित इस पुस्तक का प्रकाशन निखिल पब्लिशर्स आगरा से हुआ है जिसका लोकार्पण गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी को होने जा रहा है।
उक्त जानकारी देते हुए डाॅ देवेन्द्र जोशी ने बताया कि गणतंत्र की स्थापना के 70 वें साल में हाल ही में आगरा से प्रकाशित होकर आई इस कृति में गणतंत्र की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा को सप्रमाण सचित्र उभारा गया है। पुस्तक की शुरूआत हम भारत के लोग से शुरू होने वाली भारतीय संविधान की प्रस्तावना से होती है, इस कारण पुस्तक को नाम दिया गया है -हम भारत के लोग। पुस्तक के आमुख में भारतीय संविधान की विशेषताएं दी गई है। पूरी पुस्तक के मूल में भारतीय गण है जिसकी वर्तमान स्थिति को अलग - अलग नजरिए से पाठकों के समक्ष लाने की कोशिश की गई है।
एक लेखक के रूप में डाॅ देवेन्द्र जोशी की नितान्त मौलिक परिकल्पना पर आधारित इस अत्यंत श्रमसाध्यपूर्ण कृति में उनकी प्रखर कलमकारी के दर्शन होते हैं। गणतंत्र के गण की नब्ज को लेखक ने 20 भारतीय चरित्रों के माध्यम से टटोलने की रचनात्मक चेष्टा की है। पुस्तक गणतंत्र के गण के रूप में देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति से लेकर आम जन तक सबकी खबर लेती है। 20 अध्यायों वाली इस पुस्तक के अध्याय हैं - किसान, मजदूर, सैनिक, पुलिस, गरीब - अमीर, आदिवासी, कैदी, डाॅक्टर, नेता, बाल मजदूर, नवजात शिशु, विधवा, महिला सुरक्षा, युवा, वृद्ध, साधु, भीड, जनता और राष्ट्रपति।
सवाल उठाती किताब
पुस्तक सवाल उठाती है कि गणतंत्र की स्थापना के 70 साल बाद भी अगर किसान आत्म हत्या कर रहे है, युवा रोजगार के लिए भटक रहे हैं, महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही है, मजदूर मेहनताने के लिए संघर्षरत हैं, गरीब - अमीर की खाई चौडी होती जा रही है, निरीह लोग भीड की हिंसा क शिकार हो रहे हैं, विधवाएं बदतर जिन्दगी जीने को अभिशप्त हैं, साधु संत समाज को दिशा देनेके बजाय अपना उल्लू सीधा करने में लगे हैं, नेता अपनी कुर्सी बचाने और डाॅक्टर मरीज का खून चूसने में लगे हैं तो प्रश्न उठना लाजमी है कि आखिर कब परिपक्व होगा भारत का गणतंत्र ?
प्रामाणिक आंकडे, यथार्थ विश्लेषण
110 पेज की यह पुस्तक सवाल ही नहीं खडे करती उनका समाधान भी देती है। गणतंत्र की दास्तान होने के बावजूद यह एक प्रामाणिक कृति है क्योंकि हर बात पूरी जिम्मेदारी के साथ भारत सरकार के प्रमाणित आंकडों के आधार पर कलमबद्ध की गई है। सीधी सपाट भाषा, रोचक शैली और उत्कृष्ट कलमकारी के साथ प्रस्तुत यह पुस्तक हम भारत के लोग का यथार्थ चित्र उपस्थित करने के साथ ही पाठकों के ज्ञान में वृद्धि भी करती है।
समय की नब्ज पर हाथ
अपने समय की नब्ज पर हाथ धरते हुए आस पास के मंजर को पुस्तकाकार रूप में सामने लाने की यह कोई पहली कोशिश नहीं है। इससे पहले भी लेखक डाॅ देवेन्द्र जोशी महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित महाकाव्य 'महात्मायन', शोधग्रंथ राष्ट्रमाता कस्तूरबा, जयपुर से प्रकाशित पुस्तक 'सदी के सितारे और 2016 में प्रकाशित ऐतिहासिक ग्रंथ 'सिंहस्थ और उज्जयिनी' में भी अपनी कलम का यह जलवा दिखा चुके हैं। हम भारत के लोग उसी श्रंखला की एक कडी है। जिसे नगर के कलमकार की गणतंत्र के 70 वें साल में गण की दास्तान को लिपिबद्ध करने की एक अभिनव कोशिश के रूप में स्वीकारा जाना चाहिए।
विश्व पुस्तक मेले चर्चित
आगरा से प्रकाशित लैखक की यह सचित्र कृति विश्व पुस्तक मेले में खासी लोकप्रिय होने के बाद कल ही लेखक के हाथों में पहुंची है। इन देश में संवैधानिक अधिकारों को जिस तरह से धरना प्रदर्शन का जरिया बनाया जा रहा है में गणतंत्र के लेखेजोखे की खबर लेती यह कृति स्वतः प्रासंगिक बन चुकी है।
11 वीं मौलिक कृति
डाॅ देवेन्द्र जोशी की यह 11 वीं मौलिक कृति है जो ज्वलंत मुद्दों से साक्षात्कार कराती है। अनेक प्रसिद्ध पत्र - पत्रिकाओं के स्तंभकार और विश्वसनीय अहित्यिक सांस्कृतिक रिपोर्टिंग में सिद्धहस्थ डाॅ जोशी बिना किसी वाद और खेमे के झंडाबरदार हुए बेबाकी से कलम चलाने के कारण पाठको की पहली पसंद बने हुए हैं। समसामयिक विषयों पर लेखन के कारण वे लगातार प्रकाशन संस्थानों की मांग में बने हुए हैं।