बहुत गहरी है मालवा में हास्य व्यंग्य की जडें
बहुत गहरी है मालवा में हास्य व्यंग्य की जडें

 

डा देवेन्द्र जोशी

 

'पग - पग रोटी डग - डग' नीर की कहावत को चरितार्थ करती मालवा की शस्य श्यामला धरती की हास्य - व्यंग्य परंपरा की जडें अत्यंत गहरी है। अगर हिन्दी हास्य व्यंग्य आन्दोलन पर दृष्टि डालें तो उसकी शुरूआत के बीज मालवा और खासतौर से उज्जैन में ही पडे थे। पद्मभूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास, प्रभाकर माचवे, श्रीकृष्ण सरल, पांडेय बैचेन शर्मा उग्र, मदन मोहन मालवीय आदि अपने आरंभिक दिनों में अच्छे व्यंग्यकार रहे। बाद में वे अलग - विधाओं को समर्पित हो गए। 


देश के शीर्सस्थ व्यंग्यकार शरद जोशी इसी उज्जैन के दौलतगंज हा सै स्कूल के छात्र रहे। अ भा टेपा सम्मेलन के संस्थापक और देश के शीर्सस्थ व्यंग्यकार डाॅ शिव शर्मा के हास्य व्यंग्य अवदान से कौन परिचित नहीं है। उसे शब्दों में व्यक्त करने के लिए एक लेख नहीं अनेक पीएचडी थिसिस की जरूरत होगी।।

हास्य व्यंग्य में मालवा के योगदान की अगर बात की जाए तो मालवा की काली सौंधी मिट्टी की तरह ही यहां की स्थानीय बोली मीठी मालवी बोली अपने चुटीलेपन  से जनमानस को जहां एक तरफ लुभाती रही है वहीं दूसरी तरफ अपने व्यंग्य प्रहारों से पाठकों को आन्दोलित और उद्वेलित भी करती रही है। मीठी  मालवी बोली के जिन रचनाकारों ने अपनी हास्य व्यंग्य रचनाओं से मालवी का परचम सारी दुनिया और देश में फहराया उन पर आने से पहले यह जान लेना भी समीचीन होगा कि यहां 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के निर्गुणी भक्त कवि  और मालवी के सूफी रचनाकारों ने हास्य व्यंग्य के माध्यम से समाज सुधार का ऐसा अलख जगाया कि उज्जैन आगे चलकर हास्य व्यंग्य का तीर्थ बन गया। उसी में आज व्यंग्य की नई पीढी अपने अवदान की समिधाएं अर्पित कर रही है। संत कवियों के बाद मालवा में हास्य व्यंग्य की कमान सम्हाली माच मंडलियों ने। यह 19 - 20 वीं सदी का दौर था। मालवा के लोकनाट्य तुर्रा - कलंगी और माच की इस दौरान खूब धूम रही। हालांकि माच ऐतिहास कथाओं पर आधारित होते थे। लेकिन उनमें हास्य व्यंग्य का जो तडका लगता था उस पर दर्शक/ श्रोता झूमते - नाचते नजर आते थे। नाटक के विदूषक की तरह बीच - बीच में चुटीले व्यंग्र बाणों से विद्रूपताओं पर खूब प्रहार किया जाता था। जिस पर दर्शक तालिया बजाकर ठहाके लगाते थे। माच से हास्य की गंगा बहाने वाले माच गुरूओं में प्रमुख थे - गुरू गोपाल जी, गुरू बालमुकुन्द जी, गुरू रामकिशन जी, चुन्नीलाल जी, गुरू भैरव लाल जी, गुरू राधाकिशन जी, उस्ताद कालू राम जी, गुरू फकीर चन्द जी, गुरू श्यामदास चक्रधारी, सिद्धेश्वर सेन, मोहन सिंह जी आदि। आज भी उज्जैन में इनमें से कुछ के अनुयायी इस परंपरा को आगे बढा रहे हैं। 

मालवी के गद्य और पद्य रचनाकारों में आनन्द राव दुबे (रामा जी तो रई ग्या ने रेल जाती री),  मदनमोहन व्यास ( म्हारो नाम बाल्यो ) , श्री निवास  जोशी, हरीश निगम, नरहरि पटेल, चन्द्रशेखर दुबे, भावसार बा, बालकवि बैरागी, पूरम चन्द सोनी, शिव चौरसिया, सुल्तान मामा, जगन्नाथ विश्व, शिव उपाध्याय, झलक निगम, बटुक चतुर्वेदी, नरेन्द्र श्रीवास्तव नवनीत, और मानसिंह राही ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने विविध विषयों पर लिखते हुए हास्य व्यंग्य से भी समाज को हंसाया गुदगुदा। या और विसंगतियों पर प्रहार भी किया। 

सिलसिला यहीं नहीं थमा। दशक बीतते रहे। सदियां आती - जाती रही। इतिहास करवटें लेता रहा। साहित्य के पात्र बदलते रहे। लेकिन समाज को हास्य व्यंग्य से  जगाने का सिलसिला कभी नहीं थमा। उपरोक्त के बाद की पीढी के जिन रचनाकारों ने अपने पैने व्यंग्य बाणों से मालवा की हास्य व्यंग्य बगिया को हरा - भरा किया उनमें जगदीश चन्द्र शर्मा, रमेश जोशी मृदुल, पीरूलाल बादल, धमचक मुलतानी, काका कायथवी, बंशीधर बंधु, दामोदर दुबे, सूर्यकांत मेहता, सतीश दुबे, गफूर स्नेही, लाडसिंह गुर्जर, अरविन्द त्रिवेदी, अशोक नागर, राजेन्द्र पुष्प, पुखराज पाण्डेय, मनोरमा उपाध्याय, शशि निगम आदि की कलम से भी समय - समय पर हास्य व्यंग्य प्रस्फुटित होता रहा है। इसी क्रम मे रमेश गुप्ता चातक, ओम व्यास ओम को भी नहीं भुलाया जा सकता जो देश दुनिया में मालवा की हास्य - व्यंग्य पहचान बने। 

सारांश सिर्फ इतना कि व्यंग्य सिर्फ वही नहीं जो अखबार के पन्नों पर प्रकाशित हो रहा है। व्यंग्य  वह भी है जो जनता को हंसाते - गुदगुदाते हुए कमियों पर कोडे बरसाता है फिर चाहे वह कविता हो या व्यंग्य।  मालवा का हास्य व्यंग्य परिवेश सदा से समृद्ध रहा है। यहां के हास्य व्यंग्य को उज्जैन, इन्दौर, भोपाल, रतलाम, या हिन्दी मालवी, मंचीय और गैर मंचीय तथा व्यंग्यकार या हास्य कवि जैसे किसी विभाजन में नहीं बांटा जा सकता। क्योंकि व्यंग्य का मूल स्वर करूणा है। समाज की विद्रूपताओं पर प्रहार से उत्पन्न होने वाले घावों को सहलाने के लिए सहज हास्य की भी जरूरत होती है । इसलिए यहां हास्य व्यंग्य का  खेल मीठे और नमकीन की तरह प्रायः एक साथ ही चलता रहता है।

 

डाॅ देवेन्द्र जोशी 85 महेश नगर उज्जैन मो 9977796267