कविता

गाल पे थप्पड




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गाल पर पडने वाला थप्पड

जब आहत करता है दिल को

तब उतरती है कहानी आत्मा से

सिल्वर स्क्रीन पर दास्तान बनकर

रीयल लाईफ से रील की।

थप्पड प्रतीक है पुरषोचित 

अहंकार का, स्त्री पर होने वाले

दमन और अत्याचार का।

जब तक उठता रहेगा पुरूष

का मगरूर हाथ महिलाओं पर,

ली जाती रहेगी सहनशीलता

की देवी की अग्निपरीक्षाएं

दोहराई जाती रहेगी युगीन

अहिल्या, द्रोपदी और सीताओं

के दमन की दास्तान सामन्ती

मर्दानगी के गाल पर पडने

वाले तमाचे की तरह 

'थप्पड' बनकर।

- डाॅ. देवेन्द्र जोशी